Life Style

डिजिटल दुनिया : बच्चों की सुरक्षा बनाम मुनाफे की होड़

आज के समय में डिजिटल मीडिया हमारी जिंदगी का एक अभिन्न अंग बन चुका है। बच्चों और किशोरों के लिए इंटरनेट केवल एक मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह उनके मानसिक विकास, सामाजिक पहचान और मूल्यों को आकार देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह डिजिटल युग हमारे बच्चों के लिए सुरक्षित है?

क्या सोशल मीडिया कंपनियां मुनाफे की दौड़ में बच्चों की सुरक्षा को नजरअंदाज कर रही हैं? हाल के वर्षो में कई घटनाओं और शोध ने इस चिंता को और प्रबल कर दिया है कि किस प्रकार सोशल मीडिया के प्रभाव से किशोरों की मानसिकता और उनके व्यवहार पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

FICCI-EY की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में डिजिटल मीडिया ने टेलीविजन को पछाड़कर मनोरंजन उद्योग में सबसे अधिक राजस्व अर्जित करने वाला माध्यम बन गया है। भारत में 40 फीसद से अधिक मोबाइल फोन उपयोग का समय सोशल मीडिया पर बिताया जाता है। यह आंकड़ा बताता है कि इंटरनेट अब न केवल संचार का साधन है, बल्कि यह बच्चों की दुनिया का एक बड़ा हिस्सा बन चुका है। किशोरों के लिए सोशल मीडिया एक ऐसा मंच बन गया है जहां वे अपनी पहचान बनाते हैं, दोस्त बनाते हैं और खुद को अभिव्यक्त करते हैं, लेकिन इस जुड़ाव के गंभीर परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

नेटिफ्लक्स की चार-भागों वाली डॉक्यूमेंट्री ‘Adolescence‘ ने इस मुद्दे को और गहराई से उजागर किया है। इसमें एक 13 वर्षीय लड़के द्वारा अपनी सहपाठी की हत्या की घटना को दिखाया गया है। यह एक चरम मामला हो सकता है, लेकिन इससे यह स्पष्ट होता है कि ऑनलाइन प्रभाव किस हद तक किशोर मन को प्रभावित कर सकता है। इंटरनेट पर मौजूद ‘टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी’, घृणास्पद विचारधाराएं, और चरमपंथी विचारधाराएं किशोरों के मन में गहरी पैठ बना सकती हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का एल्गोरिदम उपयोगकर्ताओं की रुचि के अनुसार कंटेंट प्रदर्शित करता है। इस एल्गोरिदम का उद्देश्य अधिक से अधिक उपयोगकर्ताओं को प्लेटफार्म पर बनाए रखना है, भले ही इसके परिणाम किशोरों की मानसिकता पर नकारात्मक हों।

एक बार अगर कोई किशोर किसी विशेष प्रकार की सामग्री देखने लगता है, तो एल्गोरिदम उसे लगातार उसी तरह की सामग्री दिखाने लगता है। यह प्रक्रिया किशोरों को ‘रेबिट होल’ में धकेल सकती है, जहां वे खुद को एक अंधकारमय और हानिकारक डिजिटल दुनिया में फंसा पाते हैं। जब भी किशोरों के गलत कार्य की बात होती है, तो स्वाभाविक रूप से माता-पिता पर जिम्मेदारी आती है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या माता-पिता अकेले ही इस समस्या को हल कर सकते हैं?

ऑनलाइन प्लेटफार्म्स पर बच्चों की गतिविधियों पर निगरानी रखना आज के दौर में अत्यंत कठिन हो गया है। बच्चे अक्सर अपने माता-पिता से छुपाकर सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं और कई बार वे अपने वास्तविक उम्र से बड़ी उम्र का प्रमाण देकर प्रतिबंधों को पार कर लेते हैं। ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव लाया गया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे नियम व्यावहारिक रूप से प्रभावी नहीं हो सकते, क्योंकि किशोर अक्सर तकनीकी उपायों से इन प्रतिबंधों को दरकिनार कर सकते हैं। यह समस्या केवल परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक स्तर पर नीति-निर्माण और सामाजिक चेतना का भी विषय है। फेसबुक की पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस हॉगन ने 2021 में इस बात का खुलासा किया था कि कंपनी के आंतरिक अध्ययन से यह सामने आया कि सोशल मीडिया पर मौजूद चरमपंथी विचारधाराएं, आत्मघाती प्रवृत्तियां, और अवसादग्रस्त करने वाली सामग्री किशोरों के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं। इसके बावजूद, कंपनी ने अपने मुनाफे को प्राथमिकता दी और इन खतरों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए।

इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि इन प्लेटफार्मोकी जवाबदेही तय की जाए। इस गंभीर समस्या का समाधान केवल व्यक्तिगत प्रयासों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए व्यापक सामाजिक और सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है। सबसे पहले, कानूनी नियमन के तहत सरकारों को सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के लिए सख्त नियम लागू करने होंगे, ताकि वे बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें। उदाहरण के लिए, आयु सत्यापन प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाना आवश्यक है, जिससे नाबालिगों को अनुचित सामग्री से बचाया जा सके और उनकी ऑनलाइन गतिविधियों पर बेहतर नियंत्रण रखा जा सके। इसके साथ ही, शिक्षा और जागरूकता भी इस समस्या के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। माता-पिता, शिक्षकों और बच्चों को डिजिटल साक्षरता के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। यदि इस मुद्दे को जल्द ही गंभीरता से नहीं लिया गया, तो आने वाली पीढ़ी एक ऐसे साइबर युग में फंस जाएगी, जहां मुनाफे की दौड़ में उनकी मानसिक और सामाजिक सुरक्षा दांव पर लगी होगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button