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Apollo-8 मिशन के मशहूर अंतरिक्ष यात्री की प्लेन क्रैश में मौत, उगती पृथ्वी की खींची थी ऐतिहासिक तस्वीर

चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले पहले तीन अंतरिक्ष यात्रियों में से एक, रिटायर्ड अंतरिक्ष यात्री विलियम एंडर्स, जिन्होंने नासा के अपोलो 8 मिशन के दौरान "अर्थराइज" की ऐतिहासिक तस्वीर खींची थी, उनकी विमान हादसे में मौत हो गई है।

चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले पहले तीन अंतरिक्ष यात्रियों में से एक, रिटायर्ड अंतरिक्ष यात्री विलियम एंडर्स, जिन्होंने नासा के अपोलो 8 मिशन के दौरान “अर्थराइज” की ऐतिहासिक तस्वीर खींची थी, उनकी विमान हादसे में मौत हो गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को विलियम एंडर्स की उस समय मृत्यु हो गई, जब वह जिस छोटे विमान को उड़ा रहे थे, वह अमेरिका के वाशिंगटन राज्य में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

सिएटल टाइम्स ने उनके बेटे ग्रेग के हवाले से बताया है, कि 90 साल के विलियम एंडर्स उस समय विमान उड़ा रहे थे और विमान, जोन्स द्वीप के तट पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। आपको बता दें, कि जोन्स द्वीप, वाशिंगटन और वैंकूवर द्वीप, ब्रिटिश कोलंबिया के बीच सैन जुआन द्वीपसमूह का हिस्सा है।

टैकोमा में टेलीविजन स्टेशन KCPQ-TV की रिपोर्ट के मुताबिक, सैन जुआन काउंटी के रहने वाले मशहूर अंतरिक्ष यात्री एंडर्स अपने स्वामित्व वाले विंटेज एयर फोर्स सिंगल-इंजन T-34 को कंट्रोल कर रहे थे। वहीं, KCPQ पर दिखाए गए वीडियो फुटेज में एक विमान को आसमान से नीचे गिरते हुए दिखाया गया है, जो तट से कुछ दूर पानी में जा गिरा। हालांकि, सैन जुआन काउंटी शेरिफ के कार्यालय ने दुर्घटना की पुष्टि जरूर की है, लेकिन अभी तक ज्यादा जानकारी नहीं दी है।

अमेरिकी नौसेना एकेडमी के ग्रेजुएट और एयरफोर्स के पायलट, एंडर्स 1963 में अंतरिक्ष यात्रियों के तीसरे समूह के सदस्य के रूप में NASA में शामिल हुए थे। उन्होंने 21 दिसंबर 1968 को अपोलो-8 मिशन के तहत पहली बार धरती से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी थी और फिर चंद्रमा की कक्षा में पहुंचे थे।

अपोलो-8 पृथ्वी से 2 लाख 40 हजार मील की ऊंचाई तक चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचे थे। हालांकि, एंडर्स उस चालक दल में “नौसिखिया” माने जाते थे, क्योंकि मिशन कमांडर फ्रैंक बोरमैन और जेम्स लवेल के पास अच्छा खासा तजुर्बा था।

अपोलो 8 चंद्रमा मिशन, जिसे मूल रूप से 1969 में चंद्रमा की कक्षा के लिए उड़ान भरने के लिए डिजाइन किया गया था, उस मिशन को तय समय से काफी पहले इसलिए लॉन्च कर दिया गया था, क्योंकि उस वक्त रूस और अमेरिका शीत युद्ध में घिरे थे और रूस ने 1968 के अंत में चंद्रमा की कक्षा के चारों तरफ उड़ान भरने के अपने मिशन की घोषणा कर दी थी और रूस के मिशन में चंद्रमा की कक्षा में इंसानों को भेजा जाना था।

वो समय ऐसा था, जब अमेरिका और रूस, दोनों ही देश दुनिया के सामने अपनी-अपनी शक्तियों का प्रदर्शन कर रहे थे, ताकि ज्यादा से ज्यादा देश उनके पाले में आए, लिहाजा अगर रूस का मिशन पहले हो जाता, तो अमेरिका के लिए वो सबसे बड़ा झटका होता। रूस ने उस वक्त तक अंतरिक्ष के मिशनों में बार बार अमेरिका को हराया था, लिहाजा अमेरिका इस रेस को जीतना चाहता था और उसने अपोलो-8 मिशन को समय से पहले अंजाम देने का फैसला किया।

समय से काफी पहले होने की वजह से ये मिशन काफी ज्यादा खतरनाक और अत्यधिक जोखिमों से भरा था। इस मिशन में शामिल अंतरिक्ष यात्रियों को ट्रेनिंग के लिए कुछ ही महीने दिए गये और फिर उड़ान के दौरान, अंतरिक्ष यात्री एंडर्स ने उस तस्वीर को खींचा, जो बाद में ऐतिहासिक बन गया। इस तस्वीर में चंद्रमा के क्षितिज पर पृथ्वी का उदय होता हुआ दिखाया गया था।

अपोलो-8 जैसे खतरनाक मिशन को अंजाम देने के बाद जब तीनों अंतरिक्षयात्री प्रशांत महासागर में उतरे, तो उनका स्वागत किसी हीरो तरह किया गया और हजारों लोग उन्हें उतरते हुए देखने के लिए आए थे। टाइम मैग्जीन ने उन्हें उस साल ‘मैन ऑफ द ईयर’ से सम्मानित किया था।

उनके मिशन ने सात महीने बाद अपोलो-11 मिशन को अंजाम दिया गया, जिसमें अमेरिका ने पहली बार इंसानों को चंद्रमा पर उतारने में कामयाबी हासिल की और तत्कालीन सोवियत संघ के साथ अंतरिक्ष की रेस में निर्णायक जीत हासिल कर ली। अमेरिका उस वक्त वियतनाम युद्ध और कई इलाकों में गृहयुद्ध जैसे हालातों से जूझ रहा था, लिहाजा इस मिशन ने देश को एक साथ जोड़ने में अहम भूमिका निभाई थी।

 

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