बिनौली। बरनावा के श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर में रविवार को भगवान का मासिक मस्तकाभिषेक धूमधाम के साथ भक्तिभाव के साथ मनाया गया। जिसमें कई प्रांतों से आए सेंकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस अवसर पर सर्वप्रथम विवेक जैन, विकास जैन, अमित जैन के परिवार ने भगवान के महाभिषेक का पुण्यार्जन प्राप्त किया। इसके उपरांत मंदिर में आए सभी श्रद्धालुओं ने क्रमवार भगवान का महाभिषेक किया। इसके उपरांत चमत्कारी दिव्य शांतिमंत्रों के साथ भगवान के मस्तक पर विश्वशांति की कामना के साथ शांतिधारा की गई।अमित जैन ने भगवान का मार्जन किया। मार्जन के बाद श्रद्धालुओं भगवान की भक्ति की। विधानाचार्य पंडित अंशुल जैन शास्त्री ने कहां कि धर्म अभिव्यक्ति नहीं अनुभूति है, धर्म वाणी का विलास नहीं जीवन का निचोड़ है। धर्म अहिंसा संयम तप है। धर्महीन जीवन बकरी के गले में लगे धन के समान अकार्यकारी है। धर्म आत्मा का जागरण है, तो परमात्मा मार्ग का प्रकाश है। जैसे कोयल और कौवा में एक रंगरुपता होने के उपरांत भी अभिव्यक्ति दोनों की एक नहीं है, हंस और बगुला में भी रंग की एकरूपता है किंतु दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। एक के अंदर छल कपट माया की कलुषता है। दूसरे के अंदर शांत परिणाम तथा नीर क्षीर को पृथक पृथक करने की सामर्थय है। उस धर्म का जागरण होना चाहिए जो तुम्हें परमहंस बना दे। हृदय का धर्म आचरण को जन्म देता है और आचरण का धर्म भाव को परिपुष्ट करता है। वस्तु का स्वभाव ही धर्म है जैसे जल का स्वभाव शीतलता है जल को आग पर गर्म करने से वह गर्म आवश्यक होता है किंतु पीने पर शीतलता ही प्रदान करता है। उन्होंने कहा परमात्मा रूप अनुभूति करने के लिए इंद्रियों को वश में करना आवश्यक है। जिस प्रकार जल में स्नान करने से शरीर में पवित्रता आती है, औषधि से स्नान करने से निरोगता आती है, ठीक उसी प्रकार अहिंसा, संयम, तप रुपी औषधि के सेवन से आत्मा कर्म रूपी रोगों से रहित होकर स्वस्थ होती है। स्वस्थ आत्मा ही परमात्मा अनुभूति कर सकती है। आयोजन में क्षेत्र अध्यक्ष जीवंधर जैन, महामंत्री पंकज जैन, पवन जैन, भागचंद जैन, संदीप जैन, हंस कुमार जैन, विनेश जैन, प्रवीण जैन, सतेंद्र जैन, अशोक जैन, ललित शास्त्री, नेहा जैन, आदि मौजूद रहे।
With Product You Purchase
Subscribe to our mailing list to get the new updates!
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.
Related Articles
Check Also
Close