गुडग़ांव,(अशोक)। श्रीराम कथा का श्रवण करना केवल धार्मिक
अनुष्ठान या फिर कोई पुण्य कमाने के लिए नहीं होता। श्रीमदभागवत में भी उल्लेख है कि कई जन्मों के पुण्य जब एकत्र होते हैं, तब प्रभू कथा सुनने को मिलती है। क्योंकि इन कथाओं के सुनने से जहां मन शुद्ध होता है, वहीं बुद्धि विवेकी बन जाती है। उक्त उद्गार धार्मिक संस्था श्रीगीता साधना सेवा समिति द्वारा ज्योति पार्क स्थित श्रीगीता आश्रम में आयोजित 5 दिवसीय दिव्य श्रीराम भक्तिरस कथा महोत्सव के प्रथम दिन बुधवार को गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज भिक्षु ने प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सावधानीपूर्वक व आदर्श के साथ एकाग्रचित होकर प्रभू कथा का श्रवण करना चाहिए। उन्होंने श्रोताओं से कहा कि सुन-सुनकर इन कथाओं को सस्ता न समझें। कथाओं को व्यवहारिक व मनोचिकित्सकीय रुप न मिल पाने के कारण कथाएं मात्र एक व्यापार का रुप बनकर रह गई हैं। महाराज जी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि कोई भी सुरीला गला और बोलने की कला इन 2 गुणों से युक्त होकर व्यास पीठ बन जाता है। व्यास मंच पर बैठने वालों में भगवान वेदव्यास के गुण होने चाहिए। व्यास तो ज्ञान कला अवतार होते हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ महाप्रभू एवं गं्रथ पूजन के साथ हुआ, जिसमें मुख्य रुप से संस्था के प्रबधक राजेश गाबा, वेद
आहूजा, अशोक अतरेजा सहित शहर के गणमान्य व्यक्ति व श्रोता भी मौजूद रहे।