10 दिन के अंदर फांसी, जानिए क्या है एंटी रेप बिल
कोलकाता रेप-मर्डर केस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस घटना ने पूरे देश में यौन हिंसा और हत्या के आरोपियों के खिलाफ आक्रोश को जन्म दिया है।
कोलकाता रेप-मर्डर केस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस घटना ने पूरे देश में यौन हिंसा और हत्या के आरोपियों के खिलाफ आक्रोश को जन्म दिया है। डॉक्टरों की हड़ताल इस घटना के बाद शुरू हो गई, और इस मामले ने राज्य सरकार और कोलकाता पुलिस की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, ममता बनर्जी की सरकार ने महिला और बाल सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रस्तावित एंटी रेप बिल (Anti Rape Bill) आज पास कर दिया गया है। इस बिल के लिए आज एक विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें इसे चर्चा और स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया गया। आज विधानसभा में यह बिल सर्वसम्मती से पारित किया गया।
अब इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। उनके साइन के बाद यह कानून बन जाएगा। इस बिल के माध्यम से इसे सशक्त बनाने की दिशा में काम करना चाहती हैं। आपको बता दें कि इस बिल के अंदर महिलाओं और बच्चों से अपराध को लेकर कई नियम बनाए गए हैं, जिसका मकसद सिर्फ एक ही है, राज्य में महिलाओं और बच्चों के साथ हो रहे अपराध पर लगाम लगाना। तो आइए जानते है क्या है एंटी रेप बिल।
एंटी रेप बिल के बारे में जानिए…
1. रेप और हत्या करने वाले आपराधी के लिए फांसी की सजा का प्रावधान
इस विधेयक में यौन हिंसा और हत्या के अपराधियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान शामिल है। इसका उद्देश्य है कि गंभीर यौन अपराधों और हत्या के मामलों में दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, ताकि ऐसे अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित किया जा सके और समाज में सुरक्षा की भावना मजबूत हो सके। विधेयक के तहत, यदि कोई व्यक्ति बलात्कार और हत्या का दोषी पाया जाता है, तो उसे फांसी की सजा दी जा सकती है। यह प्रावधान उन मामलों के लिए है जहां अपराध की गंभीरता और पीड़ित की स्थिति को देखते हुए फांसी की सजा उचित मानी जाती है। इस सजा का उद्देश्य अपराधियों को एक कठोर दंड देना है, जिससे समाज में न्याय की भावना को कायम रखा जा सके और भविष्य में इस तरह के अपराधों की प्रवृत्ति को रोकने में मदद मिले।
2. FIR करने के 36 दिनों के भीतर सजा-ए-मौत का प्रावधान
विधेयक के तहत, गंभीर यौन अपराधों और हत्या के मामलों में विशेष प्रावधान किया गया है कि चार्जशीट दायर करने के 36 दिनों के भीतर सजा-ए-मौत का निर्णय लिया जा सके। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मामलों में त्वरित न्याय प्रदान किया जाए और न्यायिक प्रक्रिया को तेजी से पूरा किया जा सके। इस प्रावधान के अनुसार, जब कोई यौन अपराध या हत्या का मामला दर्ज किया जाता है और चार्जशीट दायर की जाती है, तो इस मामले की सुनवाई और सजा के निर्णय की प्रक्रिया को 36 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य होगा। इसका मतलब है कि आरोपी को दोषी ठहराने और सजा-ए-मौत का आदेश देने की प्रक्रिया को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा करना होगा। इसके अलावा पीड़ित के कोमा में जाने या मौत होने पर दोषी को 10 दिन में फांसी की सजा होगी।
3. 21 दिन में जांच पूरी करनी होगी
इस विधेयक के अनुसार, गंभीर यौन अपराधों और हत्या के मामलों में एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि पुलिस को जांच पूरी करने के लिए 21 दिनों की समय सीमा दी गई है। इसका उद्देश्य है कि अपराध की जांच त्वरित और प्रभावी तरीके से की जा सके, जिससे न्याय प्रणाली में किसी भी प्रकार की देरी को कम किया जा सके। जब कोई यौन अपराध या हत्या का मामला दर्ज किया जाता है, तो पुलिस को उस मामले की पूरी जांच 21 दिनों के भीतर समाप्त करनी होगी। इसमें अपराध की साक्ष्य इकट्ठा करना, गवाहों के बयान दर्ज करना, और अन्य जरूरी जांच प्रक्रियाएं शामिल हैं।
4. अपराधी की सहायता करने पर 5 साल की कैद की सजा
इस विधेयक के तहत, यदि कोई व्यक्ति यौन अपराध या हत्या के आरोपी को मदद करता है, तो उसे 5 साल की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो अपराधी को छिपाने, उसके खिलाफ गवाही देने से मना करने, या किसी भी तरह से उसे संरक्षण प्रदान करने में संलिप्त होते हैं। इस सजा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अपराधियों को किसी भी प्रकार की मदद करने वाले व्यक्तियों को भी दंडित किया जाए, ताकि वे कानून की प्रक्रिया में बाधा डालने या अपराधियों को बचाने का प्रयास न करें। यह प्रावधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि न्याय प्रणाली में पूर्ण पारदर्शिता और ईमानदारी बनी रहे और अपराधियों को उनके कृत्यों के लिए पूरी तरह से जवाबदेह ठहराया जा सके।
5. हर जिले में स्पेशल अपराजिता टास्क फोर्स बनाए जाने का नियम
विधेयक के तहत, प्रत्येक जिले में विशेष अपराजिता टास्क फोर्स (Special Aparajita Task Force) बनाने का प्रावधान किया गया है। इस टास्क फोर्स का उद्देश्य यौन अपराधों और हत्या के मामलों की तेजी से और प्रभावी जांच सुनिश्चित करना है। हर जिले में गठित की जाने वाली इस विशेष टास्क फोर्स में पुलिस के अनुभवी अधिकारी और विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो यौन अपराधों और गंभीर अपराधों की जांच में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। इस टास्क फोर्स को इन मामलों की त्वरित और सटीक जांच करने की जिम्मेदारी दी जाएगी, ताकि अपराधियों को शीघ्र और उचित दंड मिल सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके।
6. रेप, एसिड, अटैक और छेड़छाड़ जैसे मामलों में ये टास्क फोर्स लेगी एक्शन
इस विधेयक के तहत, प्रत्येक जिले में गठित की जाने वाली विशेष अपराजिता टास्क फोर्स विशेष रूप से रेप, एसिड अटैक, और छेड़छाड़ जैसे गंभीर मामलों में कार्रवाई करेगी।
यह टास्क फोर्स इन मामलों की जांच और उनके निवारण के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित होगी। इसमें पुलिस अधिकारी, जांच विशेषज्ञ, और अन्य संबंधित पेशेवर शामिल होंगे जो यौन अपराधों और हिंसा से जुड़े मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं। टास्क फोर्स का उद्देश्य इन अपराधों की त्वरित और प्रभावी जांच करना, दोषियों को जल्द से जल्द पकड़ना, और पीड़ितों को शीघ्र न्याय दिलाना होगा।
7. एसिड अटैक भी उतना ही गंभीर, इसके लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान
इस विधेयक के तहत, रेप और एसिड अटैक दोनों को अत्यंत गंभीर अपराध माना गया है, और इन दोनों अपराधों के लिए समान रूप से कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। विशेष रूप से, एसिड अटैक के मामलों में भी दोषियों के लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।रेप और एसिड अटैक की गंभीरता को देखते हुए, यह विधेयक यह सुनिश्चित करता है कि इन अपराधों में शामिल दोषियों को कड़ी सजा मिले। एसिड अटैक, जो पीड़ितों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाता है, को रेप के समान ही गंभीर माना गया है।
इसलिए, एसिड अटैक के दोषियों के लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि इस प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए एक ठोस कानूनी ढांचा तैयार किया जाए और पीड़ितों को न्याय मिले। आजीवन कारावास की सजा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दोषियों को समाज में लंबे समय तक दंडित किया जाए और ऐसे अपराधों की प्रवृत्ति को कम किया जा सके।
8. पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ भी सख्त एक्शन
इस विधेयक के अंतर्गत, पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यौन अपराधों और अन्य गंभीर मामलों में पीड़ितों की पहचान की गोपनीयता पूरी तरह से सुरक्षित रहे। पीड़िता की पहचान उजागर करने के मामले में, किसी भी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसका मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति या मीडिया पीड़िता के नाम, चित्र, या अन्य व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करता है, तो उसे कानूनी दंड का सामना करना पड़ेगा।
इस प्रावधान के अंतर्गत, पीड़िता की पहचान को उजागर करने वाले व्यक्तियों पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी, जिसमें जुर्माना, जेल की सजा, या दोनों शामिल हो सकते हैं। यह कदम पीड़ितों को मानसिक और सामाजिक दिक्कतों से बचाने के लिए उठाया गया है और समाज में पीड़ितों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इस अधिनियम ने भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा दी है और इसके तहत अपराधियों को कठोर दंड का सामना करना पड़ता है। यह कानून समाज में यौन अपराधों के प्रति जागरूकता और रोकथाम के लिए भी महत्वपूर्ण कदम है।
अपराजिता बिल कैसे बनेगा कानून?
अपराजिता विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया में राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी अनिवार्य होगी। विधानसभा में इस विधेयक के पारित होने के बाद, इसे राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा। इसके बाद, विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त करनी होगी ताकि इसे कानून का रूप दिया जा सके। पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय राज्य विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के पास 223 विधायकों का समर्थन है, जिससे इस विधेयक के विधानसभा में पारित होने की संभावना काफी उच्च थी। इसका मतलब यह है कि विधानसभा में विधेयक के पारित होने में कोई विशेष मुश्किल नहीं हुई।