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सामाजिक परिवर्तन की संवाहक होंगी द्रौपदी मुर्मू : शिवराज

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज कहा कि भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिये प्रत्याशी घोषित कर न केवल समाज के हर वर्ग के प्रति सम्मान को सिद्द किया है, बल्कि अपितु कांग्रेस शासन के अंधे युग के अंत की भी घोषणा की, जिसमें सम्मान और पद‌ अपने लोगों को पहचान से बांटे जाते थे।

भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज कहा कि भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिये प्रत्याशी घोषित कर न केवल समाज के हर वर्ग के प्रति सम्मान को सिद्द किया है, बल्कि अपितु कांग्रेस शासन के अंधे युग के अंत की भी घोषणा की, जिसमें सम्मान और पद‌ अपने लोगों को पहचान से बांटे जाते थे।
चौहान ने अपने ब्लॉग में लिखा कि भारतीय लोकतंत्र में पहली बार होगा जब कोई आदिवासी महिला सर्वोच्च पद को सुशोभित करेगी। भाजपा की सोच समरस समाज की स्‍थापना रही है। भाजपा को अपने शासन काल में तीन अवसर प्राप्त हुए और तीनों अवसरों पर उसने समाज के तीन अलग-अलग समुदायों से राष्ट्रपति का चयन किया। सर्वप्रथम अल्पसंख्यक वर्ग से महान वैज्ञानिक कर्मयोगी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, फिर दलित समुदाय के श्री रामनाथ कोविंद और अब जनजातीय समुदाय से श्रीमती मुर्मू।
उन्होंने कहा कि अभी सम्‍पन्‍न राज्‍यसभा चुनाव में मध्‍यप्रदेश से दो महिलाओं को निर्विरोध निर्वाचित किया है, जिसमें वाल्‍मीकि समाज की सुमित्रा वाल्‍मीकि भी हैं।
श्री चौहान ने स्मरण किया कि श्रीमती मुर्मू को उड़ीसा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ विधायक के सम्मान से सम्‍मानित किया, इस सम्मान का नाम था, नीलकंठ सम्मान। श्रीमती मुर्मू समाज में सेवा का अमृत बांटती रही हैं। उन्होंने अपने जीवन में कठोरतम परीक्षायें दी हैं। उन्‍होंने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में संघर्ष का मार्ग चुना और अपनी एक मात्र पुत्री के पालन पोषण के लिये शिक्षक और लिपिक जैसी नौकरियां कीं। कड़ी मेहनत से पुत्री को योग्य बनाया। रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद का चुनाव जीत कर सक्रिय राजनीति की शुरूआत की। उड़ीसा में बीजू जनता दल एवं भाजपा की सरकार में मंत्री रहीं और 2015 में झारखण्ड की पहली महिला राज्यपाल बनीं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वे आदिवासी हितों की रक्षा के लिये इतनी प्रतिबद्ध रहीं कि तत्कालीन रघुवरदास सरकार के आदिवासियों की भूमि से संबंधित अध्यादेश पर इसलिये हस्ताक्षर नहीं किये क्‍योंकि उन्‍हें संदेह था कि इससे आदिवासियों का अहित हो सकता है। किसी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकीं। यही कारण है कि उड़ीसा में लोग उन्‍हें आत्‍मबल, संघर्ष, न्‍याय तथा मूल्‍यों के प्रति समर्पित ऐसी सशक्‍त महिला के रूप में देखते हैं जिनसे समाज के लोग प्रेरणा लेते हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा प्राचीन भारत में महिलाओं, दलितों और आदिवासियों को जो गौरव और सम्‍मान प्राप्‍त था उसे पुनर्स्‍थापित करना चाहती है। विदेशी आक्रान्‍ताओं और स्‍वतंत्रता के पश्‍चात स्‍वार्थी राजनीतिक दलों ने इन वर्गों को सेवक या वोट बैंक बना दिया था, भाजपा उन्‍हें पुन: सामाजिक सम्‍मान और आत्‍मगौरव प्रदान करना चाहती है। पार्टी चाहती है कि भारत में फिर अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी जैसी महिलाओं के ऋषित्‍व की पूजा हो।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा सत्‍ता में केवल शासन करने के लिये नहीं है। पार्टी का उद्देश्‍य है कि भ्रमित हो चुकी सामाजिक सोच को सही दिशा दी जाये।
उन्होंने कहा कि अब वह समय चला गया जब चापलूसी करने वालों को सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत किया जाता था। भाजपा ने न केवल दलित, आदिवासी और महिलाओं को शीर्ष पद पर पहुंचा कर इन वर्गों का सम्मान किया है, अपितु राष्ट्र के सर्वोच्च पद्म सम्मानों को भी ऐसे लोगो के बीच पहुंचाया जो उनके सच्चे हकदार थे। पिछले पद्‌म सम्मान समारोह में, 30 हज़ार से अधिक पौधे लगाने और जड़ी बूटियों के पारंपरिक ज्ञान को बांटने वाली कर्नाटक की 72 वर्षीय आदिवासी बहन तुलसी गौड़ा को दिया गया। उन्‍हें नंगे पांव पद्म पुरस्कार लेते देखकर किसका मन भावुक नहीं हुआ होगा? हजारों लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले अयोध्या के मोहम्मद शरीफ हों या फल बेच कर 150 रुपये प्रतिदिन कमा कर भी अपनी छोटी सी कमाई से एक प्रायमरी स्कूल बना देने वाले मंगलोर के भाई हरिकेला हजब्बा हों, क्या ये पहले कभी पद्म पुरस्कार पा सकते थे। आदिवासी किसान भाई महादेव कोली, जिन्‍होंने अपना पूरा जीवन देशी बीजों के संरक्षण एवं वितरण में लगा दिया, उन्‍होंने कभी पद्‌म पुरस्कार की कल्पना भी की होगी क्‍या? जनजातीय परंपराओं को अपनी चित्रकारी में उकेरने वाली मध्यप्रदेश की भूरी बाई हों या मधुबनी पेंटिंग कला को जीवित रखने वाली बिहार की दुलारी देवी या कलारी पयट्टू नामक प्राचीन मार्शल आर्ट्स को देश में जीवित रखने वाले केरल के शंकर नारायण मेनन या गांवों और झुग्‍गी बस्तियों में घूम-घूम कर सफाई का संदेश देने और सफाई करवाने वाले तमिलनाडु के एस. दामोदरन, मध्‍यप्रदेश के बुन्‍देलखण्‍ड के श्रीराम सहाय पाण्‍डे, इनमें से किसी के बारे में पहले लोग सोच भी नहीं सकते थे कि उन्हें पद्म सम्‍मान मिलेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा सरकार राष्ट्रवाद की जड़ों को सींचने वालों की पहचान करना और उन्हें सम्मानित करना अपना कर्तव्य समझती है। राष्ट्रपति का चुनाव हो अथवा पद्म पुरस्कारों का वितरण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि, संवेदनशीलता उन्हें राजनीतिक समझौतों या स्वार्थों से बाहर निकालकर पवित्रता प्रदान करती है। श्रीमती मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भाजपा द्वारा समस्त आदिवासी और महिला समाज के भाल पर गौरव तिलक लगाने की तरह है।
उन्होंने विश्‍वास जताया कि राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती मुर्मू भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की संरक्षक और आदिवासी उत्थान की प्रणेता बनेंगीं।

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