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रखरखव के अभाव में खंडहर बना कांधला का ऐतिहासिक डाक बंगला

कांधला। अंग्रेजी शासनकाल में बना अब खंडहर में तब्दील हो गया है। आज यह आलीशान बंगला जीर्ण-शीर्ण की हालत में है और संबंधित अधिकारियों की ओर सार सज्जा के लिए टकटकी लगाए देख रहा है।बेबसी के दौर से गुज़र रहा यह बंगला अपनी बदहाली पर आंसू बहाते हुए संबंधित विभाग को कोस रहा है।
अंग्रेज़ी शासनकाल में निर्मित इस आलीशान डाक बंगले की बिल्डिंग को देखने के लिए कभी लोग दूर-दराज से सफर करके आते थे।इसकी साज सज्जा और खूबसूरती के कायल होते थे।आज सिंचाई विभाग की लापरवाही व उदासीनता के चलते यह वीरान पड़ा हुआ है। कभी सैलानियों की पहली पसंद व आकर्षण का केंद्र रहने वाला डाक बंगला आज अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है। मनोरम वातावरण के बीच बने डाक बंगले को अब संवरने की दरकार है। कभी यह गुलज़ार हुआ करता था। सैलानियों व अधिकारियों की चहल कदमी इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाती थी।अब यह ऐतिहासिक बंगला अपना अस्तित्त्व खोने के कगार पर है। अंग्रेज़ी शासनकाल में निर्मित इस डाक बंगले में आधुनिक युग की सुविधाएं आकर्षण का केंद्र बनी रहती थीं। उच्चाधिकारियों की मेजबानी के लिए डाक बंगले की खूबसूरती हमेशा तैयार रहती थी।इस आलीशान बंगले की दीवारें पूरी तरह बोसीदा हो चुकी हैं,दरवाज़े खिड़कियां टूट चुकी हैं।
आज इस आलीशान बंगले की रखरखव की ज़िम्मेदारी लापरवाह हाथों में है। देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी उजड़े चमन में आ पहुंचे हों। पालतू पशुओं की आरामगाह बने इस ऐतिहासिक बंगले को गंदगी व झाड़-झाड़ियां अपने आगोश में ले चुकी हैं,जीव-जंतुओं के लिए मानो इसे छोड़ दिया गया है। जर्जर बिल्डिंग ज़मीदोज़ होने को बेताब नज़र आ रही है।गेस्ट रूम के साथ कभी आलीशान महल जैसी दिखने वाली यह ऐतिहासिक धरोहर मिट्टी में दफन होने को है।बड़ी नहर के पास स्थित यह बंगला संबंधित अधिकारियों की उदासीनता को बयां कर रहा है। क्या कोई अधिकारी इस खूबसूरती को लौटा पायेगा। या फिर बेबसी के यह आंसू हमेशा के लिए सूखने वाले हैं। यह तो समय ही बताएगा।
बदहाली के लिए ज़िम्मेदार कौन?
इस खंडहर होते डाक बंगले में सिंचाई विभाग की बड़ी लापरवाही देखने को मिली है। विभाग द्वारा इसकी ढंग से देख रेख नहीं की गई।साथ ही इसके लिए कोई ठोस प्रस्ताव व सुधार व्यवस्था न बनाने के कारण डाक बंगला अपनी बदहाल हालत में है। इसके साथ ही भूमाफियाओं द्वारा इस बेशकीमती डाक बंगले की जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर लिया गया है, जिससे इसकी खूबसूरती पर गहरा घात लग गया है।
ज़िलेदारी तृतीय कांधला कार्यलय का हो रहा संचालन
आलीशान ऐतिहासिक धरोहर डाक बंगला की बिल्डिंग में आज भी जिलेदार तृतीय कार्यालय का संचालन किया जाता है। टूटे विधुत पोल, टूटे दरवाज़े,उगी झाड़-झाड़ियां,जर्जर बिल्डिंग,ज़मीदोज़ होने को तैयार यह ऐतिहासिक धरोहर अब मानो बेनामी की ज़िन्दगी जी रही है। कभी अपनी खुसूरती पर इतराती इस धरोहर को आज अपनी गुमनामी का डर सता रहा है। कार्यालय में बैठे अधिकारी/कर्मचारी सुन्न होकर रह गए हैं। अपने अंदर अनेकों इतिहास समेटे इस डाक बंगले की दुर्दशा पर उन्हें कभी तरस नहीँ आया। क्या कभी अपनी अंतरात्मा से आत्ममंथन कर इसकी बदहाली के बारे में सोचा। इतिहासिक धरोहर को नष्ट करने का ठेका इन्हें किसने दिया। पशुओं के बांधने की अनुमति किसने प्रदान की? कौन है इस धरोहर को नुकसान पहुंचाने का असली ज़िम्मेदार? क्या संबंधित अधिकारी या फिर पुरातत्व विभाग इस ओर ध्यान देकर इस धरोहर को बचा पाएंगे?

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