देहरादून। हिंदू धर्म में हर साल 16 दिन का पितृ पक्ष यानि श्राद्ध का समय आता है जिसमें हम अपने पूर्वजों, या पितरों को श्रद्धांजलि और सम्मान देते हैं। संस्कृत में पितृ का मतलब पूर्वज या पितर होता है, और पक्ष का अर्थ समय या अवधि होता है। वैदिक ज्योतिष के मुताबिक, जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तो पितृ पक्ष यानि श्राद्ध की शुरुआत होती है. इस अवधि को पवित्र माना जाता है और उस दौरान हम अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करते हैं। आचार्य सदानन्द सेमवाल बताया कि 15 दिन होते हैं या 16 दिन के होते हैं पितृ पक्ष।
हिंदू पंचांग की 16 तिथियों में ही इंसान की मृत्यु होती है और जब हम पितरों का श्राद्ध करते हैं तो उनकी मृत्यु तिथि के मुताबिक ही करते हैं. इसलिए पितृ पक्ष केवल 16 दिन के होते हैं हालांकि कभी यह 15 दिन भी हो जाते हैं लेकिन बढ़ते नहीं हैं।
अगर पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली आश्विन अमावस्या के दिन आप श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं तो आपके पितर नाराज हो सकते हैं. वहीं पुराणों में कहा गया है कि देवताओं की पूजा से पहले आपको अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे देवता यानि भगवान भी खुश हो जाते हैं. इसलिए आश्विन अमावस्या के दिन सभी को तर्पण करके अपने पितरों को याद करना चाहिए और ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन और दक्षिणा देनी चाहिए।