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पिता के बाद पुत्र ने भी संभाली CJI की कुर्सी, डीवाई चंद्रचूड़ बने 50वें प्रधान न्यायाधीश, राष्ट्रपति मुर्मू ने दिलाई शपथ DY Chandrachud

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (डीवाई चंद्रचूड़) बनाए गए है। उन्हें नौ नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई। डीवाई चंद्रचूड़ देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश बने है। उनका कार्यकाल 10 नवंबर 2024 को समाप्त होगा। डीवाई चंद्रचूड़ ने यूयू ललित की जगह ली है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के तौर पर जस्टीस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने नौ नवंबर को शपथ ली है। देश के 50वें सीजेआई बनाए गए है। बता दें कि ये पहला मौका है कि जब पिता के बाद पुत्र ने भी सीजेआई का पद संभाला है। उनसे पहले उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ भी सीजेआई रह चुके है। पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे के रूप में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद तक पहुंचने वाले पिता-पुत्र की एकमात्र जोड़ी है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन में उन्हें पद और गोपनियता की शपथ दिलाई। प्रधान न्यायाधीश के तौर पर उनका कार्यकाल 10 नवंबर 2024 तक रहेगा। उनका कार्यकाल पूरे दो वर्षों का है। बता दें कि 11 अक्तूबर को जस्टिस यूयू ललित ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने की सिफारिश की थी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ जून 1998 में बॉम्बे हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बने थे। इसके बाद वो अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बनाए गए। 29 मार्च 2000 से 31 अक्तूबर 2013 तक वो बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे थे।  इसके बाद वो इलाहबाद हाईकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश बनाए गए थे। सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति वर्ष 2016 में हुई थी।

पिता रह चुके हैं प्रधान न्यायाधीश

बता दें कि डीवाई चंद्रचूड़ से पहले उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ भी सीजेआई रह चुके है। उनके पिता का सुप्रीम कोर्ट में कार्यकाल सात साल चार महीने का रहा है। ये सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में किसी प्रधान न्यायाधीश का सबसे लंबा कार्यकाल रहा है। बता दें कि वो अपने पद पर 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक रहे थे।

कई मामलों में निभाई है अहम भूमिका

डीवाई चंद्रचूड़ कई अहम फैसलों में अपनी भूमिका निभा चुके है। कुछ समय पूर्व ही उन्होंने अविवाहित महिलाओं को भी 20 से 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने की अनुमति दी थी। ये ऐतिहासिक फैसला था। इसके तहत अगर पति जबरन संबंध बनाकर पत्नी को गर्भवती करता है, तो उसे भी गर्भपात का अधिकार दिया जाएगा। इस फैसले से वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को भी मान्यता दी गई थी।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा से जुड़े अधिकारों को लेकर भी उन्होंने काफी काम किया है। उन्होंने राजनीतिक और वैचारिक रूप से कई छोर पर खड़े लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दिलाई थी। सेना में स्थायी कमीशन की मांग कर रही महिलाओं के लिए भी उन्होंने सकारात्मक फैसला सुानया। अयोध्या मामले में फैसला देने वाली पांच जजों की बेंच में भी वो एक जज थे। आधार मामले में निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने में जस्टीस डीवाई चंद्रचूड़ ने अहम भूमिका निभाई थी।

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