नई दिल्ली। समाज सेवा एक पुण्य कार्य हैं, इसके कारण लोग अमर हो जाते है तथा उन्हें सदियों तक याद भी किया जाता हैं. बड़ी से बड़ी सामाजिक बुराई को समाज सेवा रुपी हथियार की मदद से दूर किया जा सकता हैं.गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत ही सुंदर पंक्ति लिखी हैं। कि ‘ परहित सरिस धर्म नहीं भाई ‘(अर्थात दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई भी धर्म नहीं हैं)
हरियाणा के जिला हिसार में कर्ण सिंह के 17 सितंबर सन 1988 में आंगन किलकारी से गूंज उठा। बिटियां ने जन्म लिया। जिसका नाम जनवी धाकड़ रखा। क्षेत्र में खुशी का बड़ा माहौल था। जबकि उस समय में बेटी के जन्म पर तरह – तरह के तानने – कसे (कमेंट) सुनने को मिलते थे। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ।
कर्ण सिंह पशु – पालन विभाग में कार्यरत थे। जानवी धाकड़ को अच्छे से पालन पोषण हुआ। जानवी धाकड़ किसी परिचय की मोहताज नही हैं, समाज ने जो प्यार और आशीर्वाद दिया हैं। उसको भुलाया नही जा सकता। सेवा के साथ – साथ फ़िल्म दुनिया के माध्यम से समाज को प्रेरित करती हैं। ‘ जानवी धाकड़ ‘ यूट्यूब चैनल पर हरयाणवी कल्चर शार्ट फ़िल्म को प्रदर्शित कर समाज मे कुछ फैली बुराई को खत्म करने का प्रयास करती हैं। सरकार की योजना को समाज तक पहुँचना व जागरूक करना।
जानवी धाकड़ बताती हैं कि मैं जादूगरी सिख रही थी, तो वहाँ से लौट रही थी तो रास्ते में एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा था। वह खाने के लिए मांग रहा था। तो मुझ से देखा नही गया। मुझे दया आई फिर मेने मन में ठाना कि समाज के लिए कुछ करना हैं। एक एनजीओ का रजिस्ट्रेशन कराया। जिसका नाम सिरसा में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया ‘ गरिमा लाडो सेवा समिति ‘ समाज में गरीबों और लाचारों को खाना खिलाते है, जो असहाय होते हैं। हमारे दरवाजे से कोई भी भूखा नहीं जाता था। सरकार व समिति के कार्यकर्ताओं की मदद से सिलाई सिखाना , कढ़ाई , बुनाई , जरूरतमंद को सर्दी में कपड़े वितरण , बच्चों के लिए शिक्षा ,गरीब लड़की शादी ,पौधा रोपण, महिलाओं और दिव्यांगों ,बुजुर्गों तथा बच्चों के लिए सामाजिक कार्य करते हैं।तथा जागरूक रैली के माध्यम से सरकार की योजनाओं का समाज मे सन्देश पहुँचना। समाज को जागरूक करना।
धाकड़ ने बताया कि सामाजिक कार्य वो चीज है, जो मुझे ख़ुशी देता है , किसी समाज अथवा राष्ट्र की उन्नति व प्रगति के लिए सभी लोगों का खुशहाल होना जरुरी हैं.
हर किसी को अपने काम से प्यार करने की बस कोई एक वजह चाहिए। मेरी वजह हैं मेरी माँ संतोष। मैंने उनसे सीखा है, मैं उनकी तरह ही बनना चाहती हूँ। मैंने उन्हें ये सभी चीजें मुझे काफी ज्यादा प्रेरित करती हैं और में भी एक समाज सेवक के तौर पर कुछ करना चाहती हूँ। हम में से सभी को थोड़ा वक़्त निकल कर समाज की मदद करनी चाहिए।