चुनावी बॉन्ड को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. राहुल गांधी ने आरोप लगाए हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने बॉन्ड को ‘रिश्वत और कमीशन’ लेने का जरिया बनाया था. आज इस बात पर मुहर लग गई है. इसी के साथ मल्लिकार्जुन खरगे, पवन खेड़ा और जयराम रमेश समेत वाम नेता सीताराम येचुरी एवं शिवसेना (यूटीबी) के आदित्य ठाकरे ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी. कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने है. भाजपा ने इलेक्टोरल बॉण्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था. आज इस बात पर मुहर लग गई है.
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, ”आज एक महत्वपूर्ण दिन है. एक महत्वपूर्ण फैसला आया है जो दिखाता है कि अंधेरे में भी रोशनी की किरण दिखती है. हमारी आपत्तियां स्पष्ट थीं. ये एक अपारदर्शी व्यवस्था थी. सत्ताधारी पार्टी को फायदा होगा. जो पैसा बीजेपी को मिला, हम भी ये जानना चाहते हैं कि आपने इन पैसों से क्या किया. बीजेपी को अकेले 5000 करोड़ से ज्यादा पैसा मिला. किस व्यक्ति या कम्पनी ने किस पार्टी को कितना पैसा दिया, ये जानने का हक हर मतदाता को है. एसबीआई इन तमाम बातों का खुलासा करे कि किस पार्टी ने कितना पैसा किसको दिया. हमारा साफ-साफ आरोप है कि ये एक भ्रष्टाचार का मामला है और प्रधानमंत्री भी इसमें शामिल हैं. ये सीधा-सीधा प्रधानमंत्री द्वारा किया गया एक भ्रष्टाचार है. हमें डर है कि कहीं सरकार फिर से एक अध्यादेश लाकर इसे पलट न दे.”
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ”चुनावी बॉन्ड योजना की लॉन्चिंग के दिन कांग्रेस पार्टी ने इसे अपारदर्शी और अलोकतांत्रिक बताया था. इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने अपने 2019 के घोषणापत्र में मोदी सरकार की संदिग्ध योजना को खत्म करने का वादा किया. हम आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं, जिसने मोदी सरकार की इस ‘काला धन रूपांतरण’ योजना को “असंवैधानिक” बताते हुए रद्द कर दिया है.” उन्होंने आगे कहा, ”हमें याद है कि कैसे मोदी सरकार, पीएमओ और एफएम ने बीजेपी का खजाना भरने के लिए हर संस्थान- आरबीआई, चुनाव आयोग, संसद और विपक्ष पर बुलडोजर चला दिया था. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस योजना के तहत 95% फंडिंग बीजेपी को मिली. हमें उम्मीद है कि मोदी सरकार भविष्य में ऐसे शरारती विचारों का सहारा लेना बंद कर देगी और सुप्रीम कोर्ट की बात सुनेगी, ताकि लोकतंत्र, पारदर्शिता और समान अवसर कायम रहे.”
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ”उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार की बहुप्रचारित चुनावी बॉन्ड योजना को संसद द्वारा पारित कानूनों के साथ-साथ भारत के संविधान का भी उल्लंघन माना है. लंबे समय से प्रतीक्षित फैसला बेहद स्वागत योग्य है और यह नोट पर वोट की शक्ति को मजबूत करेगा.” उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ‘चंदादाताओं’ को विशेषाधिकार देते हुए अन्नदाताओं पर किसी भी तरह का अत्याचार कर रही है.
शिवसेना (UBT) ने आदित्य ठाकरे ने कहा, ”एक असंवैधानिक योजना को माननीय शीर्ष न्यायालय ने खत्म कर दिया. इसके बाद महाराष्ट्र को उम्मीद है कि असंवैधानिक शासन भी खत्म किया जाएगा. चुनावी बॉन्ड योजना खत्म करने के आज के फैसले का स्वागत करता हूं” अब हमें उम्मीद है कि पारदर्शिता आएगी. वाम नेता सीताराम येचुरी ने भी फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने इस मामले में कोर्ट पहुंचे वकील शादान फरासत का भी धन्यवाद किया है.
बता दें, इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक ठहरा दिया है. मोदी सरकार की ओर से साल 2017 में लाई गई ये योजना राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाने के दावे के साथ लाई गई थी मगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे ऐसा नहीं माना. कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को चुनावी चंदा जानने का अधिकार है और ये कानून सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है. चुनावी बांड योजना का असंवैधानिक करार किया जाना केंद्र को एक बड़ा झटका माना जा रहा है.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी एसबीआई को ये जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी और EC इस जानकारी को लोगों के साथ साझा करेगा. एसबीआई को जानकारी 12 अप्रैल 2019 से सार्वजानिक करनी होगी.सीजेआई ने ये भी कहा कि आयकर अधिनियम प्रावधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 सी में संशोधन असंवैधानिक है. इलेक्टोरल बॉन्ड को लाने के लिए भारत सरकार ने करीब पांच संशोधन किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड के जरिये ब्लैक मनी व्हाइट की जा रही है और चुनावी बॉन्ड सिस्टम पारदर्शी नहीं है. इस तरह SBI चुनावी बॉन्ड जारी नहीं रख पाएगी. SBI चुनाव आयोग से 6 मार्च तक जानकारी साझा करेगी. साथ ही, एसबीआई को दान के रसीद के साथ एक हफ्ते में सार्वजनिक करना होगा. कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन पाया. अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है. इस तरह मनी बिल के जरिये लाया गया भारत सरकार का फैसला कोर्ट ने सही नहीं माना है.