झारखण्ड में सियासी नाटक के बाद हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी हुई और झारखण्ड टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बनाये गये हैं। विपक्षी दलों के नेताओं, विशेषकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को यह कहने का अवसर जरूर मिल गया कि बिहार में जहां नीतीश कुमार को लेकर चट मंगनी पट व्याह का सिद्धांत अपनाया गया, वहीं झारखंड में चंपई सोरेन बहुमत की चिट्ठी लिये राजभवन की परिक्रमा करते रहे लेकिन 24 घंटे बाद शपथ लेने की बारी आयी। इसके साथ सच्चाई यह भी है कि सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रमुख घटक झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। हेमंत सोरे की पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की बात काफी आगे तक बढ़ चुकी थी लेकिन पार्टी के अंदर उनके विरोध को देखते हुए ही किसान के बेटे और अलग राज्य के लिए लम्बी लड़ाई लड़ने वाले चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता चुना गया था। जाहिर है कि चंपई सोरेन को दो तरफा हमलों का सामना करना पड़ेगा।
चंपई सोरेन झारखंड के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं। उन्होंने 2 फरवरी राजभवन में राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उनके साथ ही कई अन्य नेताओं ने भी शपथ ली है। शपथ लेने वालों में कांग्रेस नेता आलमगीर आलम और सत्यानंत भोक्ता भी शामिल है। चंपई सोरेन को कुछ दिन पहले ही विधायक दल का नेता चुना गया था। चंपई सोरेन इससे पहले हेमंत सोरेन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। उन्हें हेमंत सोरेन परिवार के बेहद करीबी माना जाता है। चंपई सोरेन उपाध्यक्ष थे। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी की खबरों के बीच नए सीएम के लिए उनके नाम पर सहमति जताई गई थी, जिसके बाद ही ये साफ हो गया था कि राज्य की सत्ता हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी में चंपई ही संभालेंगे। अब आधिकारिक तौर पर वह राज्य के मुख्यमंत्री बन गए हैं। चंपई सोरेन ने अलग झारखंड राज्य आंदोलन में लंबी लड़ाई लड़ी थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा में कई बार विभाजन के बाद भी वो शिबू सोरेन के साथ डटे रहें थे। पहली बार साल 1991 में वो विधायक बने थे।1991 में उन्होंने निर्दलीय जीत दर्ज की थी बाद में वो जेएमएम में शामिल हो गए। साल 2000 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन 2005 के बाद से वो लगातार जीतते रहे हैं। पहली बार बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन की सरकार में वो मंत्री बने थे। बाद में वो हेमंत सोरेन के पहले कार्यकाल में भी मंत्री बने। साल 2019 के चुनाव में कोल्हान क्षेत्र में जेएमएम की अच्छी जीत में भी उनका बड़ा योगदान माना जाता है। कोरोना संकट के दौरान चंपई सोरेन की जमकर चर्चा हुई। सोशल मीडिया के माध्यम से ही उन्होंने अन्य राज्यों में फंसे झारखंड के मजदूरों की मदद की थी। बाद के दिनों में भी झारखंड के किसी भी समस्या के समाधान के लिए लोग चंपई सोरेन के पास फरियाद लगाते रहे हैं। हेमंत सोरेन के कैबिनेट में भी उन्हें संकट मोचक के तौर पर देखा जाता रहा है।
चंपई सोरेन भी शिबू सोरेन की ही तरह संथाल आदिवासी है। झारखंड में संथाल आदिवासियों की आबादी सबसे अधिक है। चंपई सोरेन को पद देकर जेएमएम अपने आधार वोट को बचाने के प्रयास में है। साथ ही अब तक ऐसा माना जाता रहा था कि जेएमएम की राजनीति पर संथाल परगना के क्षेत्र का ही कब्जा् है लेकिन कोल्हान क्षेत्र से आने वाले चंपई सोरेन को पद देकर जेएमएम इस मिथक को तोड़ना चाहती है।
चंपई सोरेन को बहुमत साबित करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है। हेमंत सोरेन की कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी के 24 घंटे से ज्यादा समय के बाद राज्यपाल ने उन्हें शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया था। विधानसभा में बहुमत साबित करने के बाद चंपई सोरेन अपने कैबिनेट का विस्तार करेंगे। इस बार मंत्रिमंडल में कई नए चेहरे शामिल किए जा सकते हैं। चंपई सोरेन से 1 फरवरी को राज्यपाल से मुलाकात कर राज्य की स्थिति से अवगत कराया था। संख्या बल में मामूली अंतर के बाद जेएमएम गठबंधन को टूट का डर सता रहा है, जिसकी वजह से उन्होंने अपने विधायकों को हैदराबाद भेजा है। कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में फंसे हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था। एजेंसी ने दिन में उनसे सात घंटे से ज्यादा पूछताछ की थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता के खिलाफ संघीय एजेंसी ने जो आपराधिक मामला दर्ज किया है वह जून 2023 की प्राथमिकी से उपजा है। इससे पहले, राज्य सरकार के कर्मचारियों और राजस्व विभाग के उप निरीक्षक भानु प्रताप प्रसाद के खिलाफ राज्य में विभिन्न स्थानों पर छापे मारे गए थे।
झारखंड में सरायकेला-खरसांवा जिले के जिलिंगगोड़ा गांव में अपने पिता के साथ खेतों में काम करने से लेकर राज्य के नये मुख्यमंत्री के रूप में नाम प्रस्तावित किये जाने तक का 67 वर्षीय चंपई सोरेन का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के वफादार माने जाने वाले राज्य के परिवहन मंत्री चंपई सोरेन को 1990 के दशक में अलग (झारखंड) राज्य के लिए चली लंबी लड़ाई में योगदान देने को लेकर ‘झारखंड टाइगर’ के नाम से भी जाना जाता है। चंपई ने झामुमो विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद चम्पाई ने कहा, ‘‘मैं अपने पिता (सिमल सोरेन) के साथ खेतों में काम किया करता था। अब किस्मत ने मुझे एक अलग भूमिका निभाने का मौका दिया है।
सरकारी स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई करने वाले चंपई की शादी काफी कम उम्र में ही हो गई थी। उनके चार बेटे और तीन बेटियां हैं। उन्होंने 1991 में सरायकेला सीट से उपचुनाव में निर्दलीय विधायक चुने जाने के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की। इसके चार साल बाद उन्होंने झामुमो के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा उम्मीदवार पंचू टुडू को हराया था। वहीं, 2000 के विधानसभा चुनाव में इसी सीट पर वह भाजपा के अनंत राम टुडू से हार
गए। उन्होंने 2005 में, भाजपा उम्मीदवार को 880 मतों के अंतर से शिकस्त देकर इस सीट पर फिर से अपना कब्जा जमा लिया। चंपई ने 2009, 2014 और 2019 के चुनावों में भी जीत हासिल की। वह सितंबर 2010 से जनवरी 2013 के बीच अर्जुन मुंडा नीत भाजपा-झामुमो गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे थे। हेमंत सोरेन ने जब 2019 में राज्य में सरकार बनाई, तब चंपई खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति और परिवहन मंत्री बनाये गए।
इसस पूर्व कल्पना सोरेन को सीएम बनाने की चर्चा थी। कल्पना सोरेन, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी हैं। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा की सदस्य हैं और वर्तमान में रांची के पास एक स्कूल की संचालिका हैं। कल्पना सोरेन विधायक नहीं हैं और अगर वह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेतीं तो उन्हें छह महीने के भीतर उपचुनाव जीतकर विधानसभा का सदस्य बनना होता। अटकलें लगाई जा रही थीं कि कल्पना सोरेन को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। पहले, हेमंत सोरेन ने कल्पना को मुख्यमंत्री बनाने की अफवाहों को खारिज कर दिया था, लेकिन बाद मंे कल्पना की तुलना राबड़ी देवी से करने की अटकलें फिर से शुरू हो गई थीं। (हिफी)