बागपत। जैन दिगम्बराचार्य श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने ऋषभ सभागार मे धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि जब व्यक्ति का पाप का उदय आता है, तो सम्पूर्ण कार्य विफल होने लगते हैं। पाप छुपाकर किया जा सकता है, परन्तु पाप के फल को छुपाया नहीं जा सकता है। पाप करते हुए व्यक्ति हर्षित होता है, परन्तु जब पाप का उदय आता है तो रोता है। पाप का फल दुःखद ही होता है। पाप परिणामों को छोड़कर ही मानव महामानव बनता है। उन्नति चाहते हो तो पाप छोड़ो, पुण्य करो।
हिंसा, झूठ, चोरी, काम कसना युक्त कुशील परिणाम एवं परिग्रह संग्रह यह पांच पाप हैं। जीवों को पीडित करना, किसी के प्राण हरण करना, यह हिंसा पाप है। असत्य भाषण करना, कटु वचन बोलना अथवा किसी के प्राण हरण हो ऐसा सत्य-भाषण भी असत्य है, पाप है। बिना अनुमति के किसी के स्वामित्व की वस्तु ग्रहण करना, चोरी पाप है। वासना मुक्त परिणाम, काम-सेवन अब्रहम पाप है। बहुत संग्रह करने का भाव परिग्रह पाप है। ये पांचों ही पाप दुःख रूप हैं। दुर्गति के कारण हैं। सज्जनों को प्रयत्न पूर्वक पापों से रक्षा करना चाहिए।
पुण्य-पाप की बड़ी महिला है।
पुण्यात्मा की पूजा होती है और पापी को कोई नहीं पूछता है। जब पाप का उदय आता है, तो पूजने वाले रहते भी नहीं हैं। एक ही माँ की दो सन्तानें, एक धनिक एक निर्धन। दो भाई, एक राजा एक भिखारी। एक लोटे में दूध भरा जाता है, एक लौटे में पानी भरा जाता है। एक व्यक्ति डोली में बैठता है और इसरे अन्य व्यक्ति होली जहाते हैं, यही पुण्य और पाप का फल है।
जो ब्रह्म में लीन होते हैं, जो ब्रह्मचर्य की साधना करते हैं, वही सच्चे वामन कहलाते हैं। जो छत्र की तरह सम्पूर्णजीवों की रक्षा करते हैं, वह क्षत्रिय कहलाते हैं। जो जन-जन पर दया, करुणा भाव रखते हैं,जिनग्या का पालन करते हैं, वही सच्चे जैन हैं। व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है।
अच्छे कर्म करोगे, तो भविष्य निर्मल होगा। हमें अपने समय, इज्जत, यश, ज्ञान और चारित्र की कीमत होना चाहिए। जो स्वयं की कीमत नहीं करता, उसकी दुनिया भी कीमत नहीं करता है। सभा का संचालन डॉक्टर श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन, सुनील जैन, पंकज जैन,राकेश सभासद, मनोज जैन, वरदान जैन, राजेश जैन, सुरेश जैन,अशोक जैन आदि उपस्थित थे
वरदान जैन मीडिया प्रभारी