गुडग़ांव, (अशोक)। महान भक्त हृदय साधक, साहित्य सेवी, एक अनूठे दार्शनिक एवं सिद्ध संत सुदर्शन सिंह चक्र की जयंती पर शिक्षाविद् संदीप जौहरी ने कहा कि उन्होंने जहां कल्याण पत्रिका के सम्पादकीय विभाग में अनेक वर्षों तक हनुमान प्रसाद पोद्दार के सान्निध्य में रहकर धार्मिक पत्रकारिता के अनेक आदर्श मानदण्ड स्थापित किए, वहीं धार्मिक, आध्यात्मिक विषयों पर 80 से अधिक पुस्तकें लिखकर साहित्य-साधना की।
जौहरी ने कहा कि उनका जन्म 4 नवम्बर, 1911 को काशी क्षेत्र के भेलहटा गांव के एक कृषक रामकिशोर सिंह के घर हुआ था। वह कलकाता चले गए और वहां उन्होंने एक अंग्रेज़ी कम्पनी में काम करना शुरू किया था। स्वदेशी अभियान से प्रभावित होकर एक दिन वे विशुद्ध खादी के वस्त्र पहनकर कार्यालय गए, जिससे अंग्रेज अधिकारी चिढ़ गया और उन्हें नौकरी से निकाल दिया। उन्होंने व्रत लिया कि वह गुलाम देश में विवाह नहीं करेंगे। उन्होंने नमक आन्दोलन में सक्रिय भाग लेते हुए भांग व शराब की दुकानों का भी विरोध किया, जिस पर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
काशी में वह संत-महात्माओं के सम्पर्क में आए तथा अपना जीवन धर्म और भारतीय संस्कृति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि स्वामी अखण्डानंद सरस्वती, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी आदि के सानिध्य में रहकर भगवान श्रीकृष्ण की उपासना-साधना में लगे रहे। उन्होंने धार्मिक मासिक संकीर्तन, मानस मणि तथा श्रीकृष्ण सन्देश पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
जयदयाल डालमिया की प्रेरणा पर उन्होंने श्री रामचरित, श्री शिवचरित, श्रीकृष्णचरित, श्रीहनुमानचरित जैसे ग्रंथ भी लिखे। शुक्रताल तीर्थ में हनुमद्धाम की स्थापना में भी उनका पर्याप्त सहयोग रहा। वह भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ हनुमान जी के उपासक थे। 25 सितम्बर, 1989 को उनका निधन हो गया था। जौहरी ने कहा कि उनके द्वारा रचित धार्मिक साहित्य युगों युगों तक नैतिकता की पे्रेरणा मानव को देता रहेगा।