सहारनपुर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पद से मुजफ्फर अली को हटाया जाना दुःखदःगुर्जर समाज
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम, हमे अपनो ने लूटा, गैरो में कहा दम था हमारी किश्ती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था
सहारनपुर। ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम, हमे अपनो ने लूटा, गैरो में कहा दम था हमारी किश्ती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था’ उक्त कहावते जिला कांग्रेस कमेटी के जिलाध्यक्ष पद से हटाए गए चैधरी मुजफ्फर अली पर पूर्णतया चरितार्थ हो रही है। गौरतलब है कि हमेशा किसी न किसी विवाद में रहने वाले सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी इमरान मसूद ने फिर एक बार चुनावी माहौल को दर किनार करते हुए अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेता चैधरी मुजफ्फर अली को हटवाने में सफलता हासिल करते हुए सहारनपुर देहात से विधायक का चुनाव लड़ने के पश्चात कुछ सैंकड़ा वोट प्राप्त किये।
प्रोपर्टी का कार्य करने वाले संदीप राणा को जिलाध्यक्ष बनवाना किसी भी लिहाज से तर्क संगत प्रतीत नहीं जान पड़ता। इस बात को लेकर हालांकि गुर्जर समाज में रोष होने के साथ मुजफ्फर अली भी सकते में हैं। चैधरी मुजफ्फर अली का दर्द है कि यदि उन्हें हटाना ही था तो कम से कम दो माह पूर्व हटा दिया जाता, परन्तु आज ठीक चुनाव से 15 दिन पूर्व हटाना बिल्कुल भी न्याय संगत नहीं है। बता दें कि यह वही मुजफ्फर अली है जिसने अपने अकेले के दम पर सितम्बर माह में वरिष्ठ नेता नसीबुद्दीन सिद्दिकी और प्रदेश अध्यक्ष ब्रजलाल खाबरी की रैली में हजारों से अधिक की भीड़ अपने खर्च पर जुटाई थी, यही नहीं सारा खर्च भी स्वयं वहन किया था। बताया जाता है कि चैधरी मुजफ्फर अली सर्व समाज के नेता कहलाते हैं।
वही यदि इनके समर्थको की बात करे तो हजारों समर्थक इनके पास हंै। अब मुजफ्फर अली अपना दर्द जाहिर नहीं कर रहे और बता रहे है कि वह पार्टी के साथ है परंतु एक अच्छे व्यक्तित्व को एक प्रकार से सम्मानजनक रूप से न हटाकर उनको पार्टी में शायद अपमानित करना कांग्रेस प्रत्याशी को कहीं भारी ना पड़ जाए। सूत्रों की माने तो पहले मजाहिर हसन मुखिया का बसपा में जाना फिर मुजफ्फर अली को हटाया जाना कितना सार्थक साबित होगा? यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा? वहीं अब गुर्जर बनाम ठाकुर की लड़ाई में कितना सार्थक सहयोग सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी को मिलता है यह देखने वाली बात होगी ?