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समझो, आत्मभूत: अनात्मभूत- आचार्य विशुद्ध सागर

समयदेशना ग्रंथ पर तीन दिवसीय विद्वत गोष्ठी प्रारंभ

दिगम्बराचार्य गुरूवर श्री विशुद्ध सागर महाराज ने ऋषभ सभागार मे तीन दिवसीय राष्ट्रिय विद्वत गोष्ठी के मध्य धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि- जगत्-प्रपंच आत्म कल्याण, आत्म शांति के कारण नहीं हैं। आत्म-साधना, संयम-तप साधना, जिन-अर्चना, गुरु वाणी रस पान, के अलावा बाह्य समस्त कार्य संसार भ्रमण के ही कारण है। आत्मा मात्र मेरा है ।शेष देह, मकान, पुत्र-पुत्री, पत्नी, परिवार, धन-सम्पत्ति बाह्य द्रव्य मुझसे अत्यंत भिन्न ही हैं। संयोग का वियोग होगा।

विचार करो, आत्मभूत क्या है और अनात्मभूत क्या है? लोक में सबसे सुन्दर कोई वस्तु है, तो वह अरस-अरूपी आत्मा है। अनात्मभूत पदार्थ मेरे कल्याण के साधन नहीं हैं। अनात्मभूत जड़ द्रव्य मेरे आत्मभूत आत्म द्रव्य से अत्यंत भिन्न हैं। फोटो, तस्वीर, नाम ये सब अनात्म भूत है, अनात्मभूत पर रागदृष्टि संसार भ्रमण का कारण है। राग-द्वेष, मोह भाव अनात्मभूत ही है, इन अनात्मभूतो के कारण जीव संसार सागर में घनघोर कष्ट प्राप्त कर रहा है।

अहो मानव! कर्म के वशीभूत होकर अनंत बार कष्ट भोगे हैं, अब कर्मों से मुक्त होने का पुरुषार्थ करो। परम शांति प्राप्ति
का पुरुषार्थ करो। आत्म भूत जानो, आत्म भूत का चिंतन करो, आत्मभूत को अनुभूत करो। आसव भाव छोड़ो, आत्मभूत पर दृष्टि करो। अनात्मभूत से चित्त को शीघ्र हटाओ, आत्म भूत पर दृष्टिपात करो। समझो, सँभलो, सोचो। निरन्तर आत्म- चिंतन करो।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव के सानिध्य में त्रिं-दिवसीय संगोष्ठी प्रारम्भ हुई। समयसार ‘समयदेशना’ ग्रंथराज पर हुई संगोष्ठी। संगोष्ठी में डॉ. श्रेयांस जैन बड़ौत, पंडित भी वीरसागर दिल्ली, डॉ. सोनल शास्त्री दिल्ली, पंडित विनोद रजवांस, डॉ. कमलेश जैन जयपुर, ज्योति जैन खतौली, प्रो. विनोद जैन छतरपुर, इंजीनियर- दिनेश जैन भिलाई, पंडित श्री ऋषभ जैन दमोह, डॉ. ‘बाहुबली जैन आदि अर्धशतक त्यागी, विद्वानों ने सहभागिता की। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉक्टर वीर सागर जैन दिल्ली ने की। संचालन डॉक्टर श्रेयांस जैन द्वारा किया गया।

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