श्री जैन स्थानक शहर बड़ौत मे पूज्य श्री राजेंद्र मुनि जी महाराज, नरेंद्र मुनि जी महाराज और जयंत मुनि के सानिध्य मे संवत्सरि पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया।
पूज्य श्री राजेंद्र मुनि जी साहब ने संवत्सरी महापर्व के शुभ दिन पर अंतगड़दसा सूत्र की वाचनी को अर्थ सहित सम्पूर्ण किया। आज एक रोचक प्रसंग रखा ।एक बार उज्जैन का राजा चडप्रघोत स्वर्णगलिका दासी जो बहुत सुंदर मोहिनी व स्वर्णवर्णी थी उसको अपनी रानी बनाने के इरादे से रात्रि के अंधेरे में चुराकर अपने शहर में ले गया।
राजा उदायन ने दूत भेज कर राजा से स्वर्ण गुलिका को वापस करने के लिए सन्देश भेजा। अभिमानी राजा ने दूत का तिरस्कार कर भेजने से इंकार कर दिया ।अंततः राजा उदायन सेना लेकर उज्जैन की ओर कूच कर गया। दोनों सेनाये आमने-सामने मेदान मे डट गई ।भयकर युद्ध हुआ। उदायन ने चडप्रघोत को बंदी बना लिया। भादो का मास ओर पर्यूषण पर्व आ गए । पर्यूषण पर्व के 7 दिन बीते पर्यूषण पर्व का आठवां दिन संवतसरी महापर्व आया। शाम के समय प्रतिक्रमण के बाद राजा उदायन सभी व्यक्तियों से क्षमा याचना कर रहे थे। इसके बाद वे बंदी चंडप्रघोत के पास पहुचे। ओर कहाँ भाई तुम मुझे माफ़ करो।
चंडप्रघोत ने कहाँ ये क्या माफ़ी का ढोंग रचा रहे हो मुझे पशुओं की तरह पिंजरे में बंद कर रखा है और फिर माफी मांग रहे हो। राजा उदायन ने संवत्सरी महापर्व को सच्चे रूप में मनाने का आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रचंड प्रतिद्वंदी राजा चंडप्रघोत को पिंजरे से बाहर किया। हृदय से द्वेष के बीज को समाप्त कर दिया।
त्याग शिरोमणि राजऋषि श्री राजेंद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि आज संवतसरी महापर्व है। यह शरीर का या सामाजिकता का पर्व नहीं है ,बल्कि शुद्ध आत्मा व अध्यात्म का पर्व है। यह पर्व समता व समाधी का पर्व है। समापना का यह मंगल मुहूर्त है । आत्म साधना का यह ऐतिहासिक दिन है और जीवन निर्माण की अनमोल घड़ी है। संवत्सरी का अर्थ क्या है व इसको क्यों मनाते हैं? संवतसरी का सीधा सा अर्थ है साल जिसे आम भाषा मे संवत कहते हैं।
संवत ही संवतसरी है संवत का सबसे शुभ पवित्र दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन संवतसरी महापर्व है..। आज संवत्सरी महापर्व के शुभ अवसर पर राजश्री राजेंद्र मुनि जी ने, विराजित नरेंद्र मुनि जी महाराज व जयंत मुनि जी महाराज सहित अपने गुरु सुदर्शन संघ के सभी मुनिराजो से क्षमा याचना की । अन्य सभी संघ के मुनिराजो से भी क्षमा याचना की।
श्रमण संघ के आचार्य श्री शिव मुनि जी व युवा आचार्य श्री महेंद्र ऋषि जी वह अन्य मुनिराजो से भी क्षमा याचना की। बड़ौत शहर में विराजित दिगंबर जैन आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज साहब वह उनके 18 शिष्यों से भी क्षमा याचना की। गुरुदेव ने क्षमाशील होने के तीन लाभ बताएं 1- कोई दुश्मन नहीं रहेगा 2- मन में समाधि बनी रहेगी 3- अंतिम समय शांति से गुजरेगा। संवतसरी महापर्व के आज के प्रवचन के अंत मे रिकॉर्ड तोड़ उपस्थित जनसभा से क्षमा याचना कर शुभ मंगल पाठ सुनाने की महती कृपा करी। सभा मे घसीटू मल जैन, संजय जैन, शिखर चंद जैन, अमित राय जैन, वीरेंदर जैन, राजीव जैन,आदि उपस्थित थे।